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Shiv Tandav Stotram by Ravana रावण द्वारा शिव तांडव स्तोत्रम्


  रावण द्वारा शिव तांडव स्तोत्रम्

Shiv Tandav Stotra

शिव तांडव स्तोत्र के क्या लाभ हैं?

शिव तांडव स्तोत्र के असंख्य लाभ हैं। शिव तांडव स्तोत्र का जाप करने या सुनने से व्यक्ति को अपार शक्ति, सौंदर्य और मानसिक शक्ति मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि स्तोत्र का जाप करने से सभी नकारात्मक ऊर्जाएं दूर हो जाती हैं और वातावरण पवित्र हो जाता है।


जटाटवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥

जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।

धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।

कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।

मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदमद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।

धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध लीरुचि प्रबंधकंधरम्‌।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।

स्मरांतकं पुरातकं भवांतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।

धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।

तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः सम प्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥१२॥

कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुंज-कोटरे वसन् विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मंजलिं वहन्।

विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे।

तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मिं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

॥ इति श्रीरावणकृतं शिव ताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥



The one whose throat is bleached by the streams of Ganga flowing from his dense, forest-like hair, the one who has garlands of big and long snakes hanging around his neck, and the one who performs ferocious tandav by playing dum-dum damru, May that Lord Shiva bless us.

In the hair of Lord Shiva, in whose hair the waves of Goddess Ganga are moving with great speed and luxuriantly, are fluttering on his head, on whose forehead the fierce flames of fire are burning brightly, my love for that child, adorned with the moon, is every moment. Keep growing.

Those who remain extremely happy in the blissful and delightful sarcasms of Parvatrajsuta (Parvati Ji), in whose head resides the entire creation and living beings, and whose mere grace removes all the troubles of the devotees, such Digambaras (wearing the sky like clothes) May my mind always remain happy by worshiping Lord Shiva.


May I rejoice in the devotion of that Lord Shiva, who is the support and protector of all living beings, whose light of the beads of the snake's hood wrapped in his hair, illuminates the directions with the glow of saffron in the form of a yellow-coloured aura and who is adorned with elephant skin.

May that Chandrashekhar, whose feet are stained with the dust of the flowers from the heads of gods like Indra, Vishnu etc. (to whom the gods offer flowers from their heads), and whose red snake resides in his hair, may he grant us wealth for ever.

Lord Shiva, who, burning the pride of the Indradi gods, destroyed Kamadeva with the fire of his huge head, and who is worshiped by all the gods and is adorned by the moon and Ganga, may he grant me success.

My love for that Shiva ji, whose fierce flame throbbing from his head incinerated Kamadeva and who is very clever in painting the front part of Shiva Parvati's breast (here Parvati is nature, and painting is creation). Be firm.

May Lord Shiva grant us all kinds of prosperity, whose throat is as black as the new moon night, filled with new clouds, who is adorned with grass, Ganges and childish moon and who bears the burden of the world. .

Whose neck and shoulders are adorned with the beautiful dark light of a fully bloomed blue lotus, who is the destroyer of Kamadeva and Tripurasura, the destroyer of the sorrows of the world, the destroyer of Dakshayagya, the destroyer of Gajasura and Andhakasura and the one who controls death. , I worship that Lord Shiva.

I worship Lord Shiva who is auspicious, indestructible, who tastes the essence of all the arts, who burns Kamadeva to ashes, the destroyer of Tripurasur, Gajasur, Andhakasur, the destroyer of Dakshayagya and also the embodiment of Yama for Yamraj himself.

Lord Shiva, engrossed in the Tandava dance with the auspicious high dhim-dhim sound of the Mridanga, amidst the fierce fire which has increased in his forehead due to the hiss of the snakes moving with great speed, is becoming adorned in every way.

I worship Shiva who has equal vision on hard stones and soft beds, snakes and pearl garlands, precious gems and pieces of clay, enemies and friends, kings and subjects, straws and lotuses.

When will I attain eternal happiness while residing in the Kachargun of Ganga Ji, being honest, wearing Anjali on my head and chanting the mantra of Lord Shiva with playful eyes and forehead?

May the beauty of the body parts of Mahadev Ji, the abode of supreme splendor, bewitch with the fragrant melody falling from the garlands of flowers woven on the heads of the Devanganas, always increase the happiness of our hearts filled with ecstasy.

May the auspicious sound of singing Shiva's song at the time of marriage of girls with female form, animadic Ashtamahasiddhis and playful eyes, in burning sins like the mighty Vadvanal, complemented by Shiva Mantra, the best of all mantras, may destroy the worldly sorrows and attain victory.

By merely reading or listening to this excellent Shiva Tandava Stotra daily, the being becomes pure, gets established in the Supreme Guru Shiva and becomes free from all kinds of illusions.

At the end of the morning Shiva puja, by singing this Ravana-written Shivtandvastotra, Goddess Lakshmi remains stable and the devotee is always blessed with wealth like chariots, yards, horses etc.



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