आज अमावश्या पर करें पितरों को प्रसन्न पितृ स्तोत्र द्वारा।
जब हम पितरों का ऋण चूकते हैं उनकी प्रस्संनता हेतु उपाय करते हैं, तो पितृदोष दूर होकर जीवन में सफलता के मार्ग खुलने लगते हैं,
श्री विष्णु पुराण में कहा गया है की, पितृ पक्ष में पितृ श्राध्द मिलने पर प्रसन्न होते हैं, और तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं, इसी तरह अमावश्या जो की २०२४ की पहले विशेष पौष मॉस कृष्णा पक्ष अमावश्या के दिन पितृ साधना या पितृ स्तोत्र का पाठ कर लाभ उठायें,
पितृ क्या हैं?
यह तो पूर्णतः सत्य और सिद्ध हो चूका है की मृत्यु ही जीवन का अंत नहीं है , उसके बाद भी एक ऐसा जीवन हैं जो इस जीवन से ज्यादा प्रभावशाली , और नियंत्रण से परे हैं, वास्तविक जीवन में जो रुकावट हैं अर्थात भौतिक जीवन में जो बढ़ाएं हैं अंकुश हैं , मिर्त्यु के बाद वह दूर हो जाती है और प्रत्येक व्यक्ति सूक्षम शक्तिशाली पुंज बन जाता है,
जीवन में उन्नति के लिए पूर्णतः बाधाओं के शमन के लिए पूर्णतः कृपा के लिए गुरु कृपा को उच्चतम कहा गया है इसमें कोई दो राय नहीं हैं गुरु के पश्चात् परिवार ही सबसे बड़ा सहयोगी हैं और परिवार में जो भी पूर्वज हैं उनका स्थान उच्च हैं।
जीवित रहते आपस में कई मतभेद मन मुटाओ होते हैं किन्तु मरने के बाद यह सब सांसारिक स्थितियां समाप्त हो जाती हैं। एक पिता की भांति हमारे पूर्वज सदैव यही चाहते हैं की उनकी संतान सदैव जीवन में सुखी हों , यदि पितरो को प्रसन्न किया जाये तो जीवन में आने वाली कार्य में आने वाली रुकावटें दूर होने लगती हैं, पितरेश्वर, शब्द से समझा आता हैं की पितरों को ईश्वर तुल्य सम्भोदित किया गया, क्यों की पितरेश्वरों की शक्ति सूक्ष्म शरीर होने के कारन अत्यंत विशाल बन जाती हैं, वे अपनी शक्ति से आने वाली घटनाओ को भी देख सकते हैं, उनकी पूर्ण कृपा हो तो संतान को ऐसा रास्ता दिखा सकते जिसमे काम से कम बाधाएँ हों , वे जीवन में सम्पूर्ण उन्नति देने में सक्षम होते हैं कोई भी कार्य उनके लिए असंभव नहीं होता बस जरुरत हैं तो पितरो को प्रसन्न करने की , तो इस स्तोत्र का पितृ पक्ष में और आज अमावश्या पर जाप जरूर करें
पुराण से लिया गया स्तोत्र
पितृ स्तोत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ॥
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि: ॥
प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ॥
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ॥
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ॥
तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानस:।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुज: ॥
॥ इति पितृ स्त्रोत समाप्त ॥
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